एस.वाई.एल. नहर पर तैरती राजनैतिक नौका

1966 में शुरू हुआ सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद इतना जटिल और पुराना हो चला है कि नीति-निर्माताओं को भी इसकी पूरी समझ नहीं है (Gill, 2016)। सिर्फ नहर निर्माण से पानी की समस्या दूर नहीं हो सकती। इस लेख में एस.वाई.एल. मुद्दे से सम्बंधित कुछ पहलुओं को समझेंगे।

Author: अंशुल गोयल

Consultant, Bhajan Global Impact Foundation

1960 के दशक से शुरू हुई हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न की कमी वाले देश से अधिक खाद्यान्न उत्पादक देश में तबदील कर दिया। इस क्रांति का सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाले राज्यों में हरियाणा और पंजाब का नाम आता है। दोनों राज्यों के कृषि करने के तौर-तरीकों में बहुत बड़ा बदलाव आया। जैसे पारंपरिक कृषि चक्र में धान की बुआई में वृद्धि होना और कृषि चक्र गेहूं-धान उत्पादन से पूरा होना। इससे देश की खाद्यान्न की जरुरत पूरी तो हुई परन्तु जल संसाधनों का बहुत शोषण होने लगा। जिसका परिणाम 1979 में पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में भूमिगत जल स्तर में कमी के रूप में दिखना शुरू हो गया (Sood, 2015)।

पॉल सिंह ढिल्लों,1988 की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब और हरियाणा में सिंचाई जल की मांग 95 एमएएफ(मिलियन एकड़ फीट) है। इसके विपरीत कैनाल सिस्टम से सिर्फ 35 एमएएफ की ही पूर्ति हो पाती है (Gill, 2016)। बाकी जल पूर्ति के लिए वर्षा और भूमिगत स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। 1988 के मुकाबले आज का आंकड़ा तो और भयावह होगा। घटते जल स्तर ने दोनों राज्यों में रावी-ब्यास पानी के बटवारे की जद्दोजहद को बढ़ा दिया। जो ‘सतलुज यमुना लिंक’ या एस.वाई.एल मुद्दे के नाम से आज भी जारी है। 1966 में पंजाब&हरियाणा के बटवारे से शुरू हुआ यह मुद्दा इतना पुराना और जटिल हो चला है कि आम जन तो दूर नीति निर्माताओं को भी इसका पूरा ज्ञान और समझ नहीं है (Gill, 2016)। इस लेख में हम सबसे पहले सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद के इतिहास को समझेंगे। फिर इसके राजनैतिक पहलू और समाधान पर विचार करेंगे।

Source: Dainik Tribune Online, 2016 CITATION Dai18 \l 1033 (Online, 2018)

सतलुज यमुना लिंक विवाद का इतिहास

1955 में जल बटवारा और इंडस जल संधि:

29 जनवरी 1955 कों केंद्रीय सिंचाई मंत्री के तत्वाधान में पंजाब राज्य, पीईपीएसयू (पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ), राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के बीच रावी और ब्यास के जल बटवारे को लेकर समझौता हुआ। जिसके अंतर्गत 1921-45 की प्रवाह श्रृंखला पर आधारित 15.85 एमंएएफ (मीलियन एकड़ फीट) जल को बांटा गया। पंजाब ( पीईपीएसयू सहित) को 7.2 एमएएफ राजस्थान 8 एमएएफ व जम्मू और कश्मीर को 0.65 एमएएफ जल निर्धारित किया (PTI, 2016)।

ताजा-ताजा अलग हुए भारत और पाकिस्तान के बीच भी इसी समय जल बटवारे को लेकर विवाद चल रहा था। जिसे लेकर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर गया और विश्व बैंक के दखल के बाद 1960 में इंडस जल संधि हुई। जिसके अंतर्गत पूर्वी नदियां रावी,ब्यास और सतलुज भारत को सौंपी गई और पश्चिमी नदियां सिंध, चिनाब व झेलम पाकिस्तान को दी गई (Qureshi, 2017)।

1966 पंजाब व हरियाणा का बटवारा:

1 नवंबर 1966 में पंजाब राज्य का बटवारा हुआ और हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया। उसी के साथ आया कभी न खत्म होने वाला जल बटवारे का विवाद। नवनिर्मित हरियाणा ने रावि-ब्यास में पंजाब के कुल हिस्से 7.2 एमएएफ से 4.8 एमएएफ जल की मांग रखी। जबकि पंजाब ने कृषि के लिए पानी की जरुरत और तटीय राज्य होने के आधार पर पूरे हिस्से पर अपना दावा किया (Ghuman, 2017)।

1976 में केंद्र सरकार का फैसला:

भारत सरकार ने 24 मार्च 1976 को हरियाणा सरकार के दबाव में जल बटवारे के आदेश देते हुए कहा कि, “ब्यास प्रोजेक्ट के पूरा होने पर हरियाणा राज्य को 3.5 एमएएफ पानी मिलेगा और सिर्फ 3.5 एमएएफ जल पंजाब को मिलेगा” (Gill, 2016)। यह आदेश “पंजाब पुनर्निर्माण अधिनियम, 1966” की धारा 78(3) के अंतर्गत दिए गए थे। हरियाणा ने एक लिंक नहर बनाने का सुझाव दिया। जिसे सतलुज यमुना लिंक नहर का नाम दिया गया। जिसके जरिये हरियाणा सतलुज से अपने हिस्से का पानी ले सके। साथ ही हरियाणा सरकार ने ये भी दरख्वास्त की इस कैनाल का निर्माण 2 वर्ष के भीतर हो जाना चाहिए (Pattnaik, 2002)।

1977 में तत्कालीन शिरोमणी अकाली दल सरकार ने इस अधिनियम की धारा 78-80 की वैधता को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी (Ghuman, 2017)। वहीँ दूसरी ओर इस आदेश की पालना के लिए हरियाणा सरकार भी सुप्रीम कोर्ट गई। 1978 में पंजाब सरकार ने एस.वाई.एल. कैनाल निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु हरियाणा से 3 करोड़ की मांग की। हरियाणा सरकार ने 1979 को 1 करोड़ की पहली किश्त भी दी (Tribune, 2016)।

1981 में पंजाब हरियाणा और राजस्थान में बनी सर्व सहमति:

31 दिसम्बर 1981 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तत्वाधान में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच सतलुज यमुना लिंक पर समझौता हुआ। मुख्यमंत्री दरबार सिंह (पंजाब), मुख्यमंत्री भजन लाल(हरियाणा) और मुख्यमंत्री चरण सिंह माथुर (राजस्थान) ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। 8 अप्रैल 1982 को इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गाँव में कस्सी चलाकर सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण की शुरुआत की (Ghuman, 2017)। जिसके विरुद्ध शिरोमणी अकाली दल ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के साथ मिलकर धर्म युद्ध मोर्चा का बिगुल बजा दिया। इसी समय पंजाब में उग्रवाद काफी फ़ैल गया और बहुत बड़ी&बड़ी घटनाएं हुई जैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गाँधी की हत्या व सिख दंगे।

Source:South Asia Network on Dams, Rivers and Peoples CITATION SAN16 \l 1033 (SANDRP, 2016)

1985 का पंजाब एकॉर्ड:

24 जुलाई,1985 को प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और अकाली दल अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोंगवाल के बीच “पंजाब एकॉर्ड” हुआ। जिसमे यह तय हुआ कि एक ट्रिब्यूनल पंजाब और हरियाणा के दावों की जांच करेगा। जिसके साथ अकाली दल ने अपना विरोध वापस ले लिया (Gopal, 2017)। हालांकि अकाली दल के ही काफी नेता इस समझौते के खिलाफ थे। एकॉर्ड पर हस्ताक्षर करने के एक महीने के भीतर संत लोंगवाल की हत्या हो गई। इस अशांति के माहौल में सुरजीत सिंह बरनाला पंजाब के नए मुख्यमंत्री बने और कैनाल का कार्य पुन: शुरू हुआ।

लेकिन 1990 में एस.वाई.एल. के मुख्य अभियंता (चीफ इंजिनियर) और उसके सहयोगी की हत्या के बाद इसका निर्माण फिर से बंद हो गया। समय बीतता गया और कोर्ट में यह मामला चलता रहा।

2002 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

मुद्दे ने बड़ा मोड़ 15 जनवरी 2002 को लिया जब जस्टिस जीबी पटनायक और जस्टिस रुमा पाल की बेंच ने पंजाब राज्य को 1 वर्ष के भीतर कैनाल का निर्माण पूरा कर उसे शुरू करने के निर्देश दिए (Express, 2016)। इस आदेश की पालना न होने पर कोर्ट केंद्र सरकार को निर्माण कार्य पूरा करने के निर्देश दिए (Ghuman, 2017)।

2004 पंजाब टर्मिनेशन ऑफ़ ट्रीटी एक्ट:

सुप्रीम कोर्ट के केंद्र को आदेश देने के कुछ समय बाद 12 जुलाई 2004 को पंजाब विधान सभा में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने “दी पंजाब टर्मिनेशन ऑफ़ एग्रीमेंट बिल, 2004” पेश किया। जिसके तहत 31 दिसम्बर 1981 और रावी-ब्यास सम्बंधित अन्य समझौतों को खारिज किया गया (The Punjab Termination of Agreement Bill(PTAA), 2004)। इस एक्ट को राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट की सलाह के लिए भेजा गया।

7 मार्च 2016 को कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू की।इस समय तक हरियाणा अपने हिस्से का 92 कि.मी. कैनाल का निर्माण कर चुकाथा और पंजाब की ओर से भी अधिकतर हिस्से का निर्माण पूरा हो गया। लेकिन पंजाब विधानसभा में इसी बीच ‘पंजाब सतलुज यमुना लिंक कैनाल लैंड(ट्रांसफर ऑफ़ प्रॉपर्टी राइट्स) बिल, 2016’ पास हो गया (Ghuman, 2017)। जिसके अंतर्गत एस.वाई.एल. की अधिगृहित भूमि को पंजाब सरकार मुफ्त में वापस देगी।इस के साथ ही पंजाब के किसानों ने कैनाल की जगह को मिटटी से भरना शुरू कर दिया (PTI, 2016)। नवम्बर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को स्थिति वैसे ही बनाए रखने के निर्देश दिए और पंजाब टर्मिनेशन ऑफ़ ट्रीटी एक्ट, 2004 को असवैधानिक करार दिया।

मार्च 2016 में पंजाब सरकार ने 191.75 करोड़ का चेक हरियाणा सरकार को एस.वाई.एल. कैनाल के लिए भेजा। जिसे हरियाणा सरकार ने लौटा दिया (PTI, 2016)।पंजाब और हरियाणा में एस.वाई.एल. कैनाल के निर्माण पर हरियाणा सरकार ने 850 करोड़ खर्च किया है। अगर 1983 में इस कैनाल का निर्माण हो जाता हो हरियाणा 2002 तक 5000 करोड़ के खाद्यान्न उत्पादन कर सकता था (Pattnaik, 2002)।

एस.वाई.एल. पर राजनीती:

जानकारों के अनुसार दोनों राज्यों में एस.वाई.एल. मुद्दे को लेकर सिर्फ राजनीति खेली जा रही है। जैसे 2004 में कांग्रेस की अमरिंदर सिंह की सरकार ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ़ ट्रीटी एक्ट सबके समक्ष लाया। 2016 के पंजाब चुनाव से कुछ समय पहले ही पंजाब की शिरोमणी अकाली दल सरकार का एस.वाई.एल. जमीन को वापस लौटाने का निर्णय (Gill, 2016)। दूसरी ओर हरियाणा में एस.वाई.एल. के मुद्दे पर इंडियन नेशनल लोकदल रोड रोको आन्दोलन और जेल भरो आन्दोलन कर चुकी है। हर दल अपने राज में इस मुद्दे पर राजनैतिक फायदा लेने की कोशिश करता रहा है। 1981 और 1985 के बाद एस.वाई.एल. पर कोई सर्व सहमति नहीं बन पाई है।

1971 से 2011 दोनो राज्यों की जनसंख्या लगभग 2.5 गुणा बढ़ चुकी है। जिसके साथ ही पानी की मांग बहुत बढ़ गई और अगर सही समय पर समाधान नहीं हुआ तो यह मुद्दा दो राज्यों में दंगों की नौबत भी पैदा कर सकता है । आज यह समस्या सिर्फ एस.वाई.एल कैनाल निर्माण द्वारा पानी हरियाणा तक पहुँचने से हल नहीं होगी। क्योंकि दोनों राज्यों में 1966 से अब तक पानी की दिक्कत इतनी बढ़ चुकी है कि कैनाल निर्माण के बाद भो दोनों राज्यों में पानी की भारी किल्लत रहेगी।

जल समस्या समाधान के लिए

आज के समय में हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य इस समस्या के सही समाधान तक पहुंचना है। यानि सभी किसानों को पानी मुहैया कराना व जल का सही प्रयोग करना। जानकारों का मानना है कि अगर हरियाणा और पंजाब सिंचाई जल प्रयोग में 15-20 प्रतिशत कुशलता लाए तो दोनों राज्य एस.वाई.एल. विवाद जितना जल बचा सकते है (Tribune, 2016)। क्योंकि अभी सिंचाई के लिए प्रयोग होने वाले जल में से 20-30 प्रतिशत बरबाद हो जाता है (Gill, 2016)।

दूसरी ओर फसल चक्र में धान की जगह कम जल वाली फसलों का उत्पादन करना होगा जिससे खेती के लिए पानी की जरुरत में कमी आएगी। राज्य सरकारों को इस ओर अधिक ध्यान देने की जरुरत है।

अब इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाना होगा। लेकिन एक राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना न करने की रीति देश में गलत परम्परा की शुरुआत है। राजनैतिक दलों द्वारा इस मुद्दे को सुलझाने की बजाय राजनीति लोगों की आँखों में धूल झोंकना है और चुनाव को विकास के मुद्दों से दूर ले जाना है।

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